Tejendra kumar singh
सफेद मूसली की खेती कैसे करें।How to cultivate Safed Musli.
सफेद मूसली की खेती करने का तरीका
प्रिय किसान भाइयों kisan baba hindi news men आप का स्वागत है,दोस्तों इस लेख में आप जानने वाले हैं कि 'सफेस मूसली की खेती कैसे करें'सफेद मूसली की खेती का तरीका। इस लेख को पूरा अवस्य पढ़ें व अपने ज़रूरतमंद लोगों को शेयर भी करें।
Safed Musli Farming1-सफेद मूसली की सामान्य जानकारी:- सफेद मूसली की खेती करने के लिए अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है। सफेद मूसली एक औषधीय फसल के रूप में की जाती है। यह बाजार में काफी ऊची कीमत में आसानी से बिक जाती है। यदि कोई किसान इसकी फसल को करता है तो लाखों रुपये कमा सकता है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए गर्म व समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्र में इसकी खेती के लिए अच्छा माना जाता है।
2- सफेद मूसली के औषधीय गुण:- सफेद मूसलों आयुर्वेदिक, व यूनानी दवाइयों के निर्माण के लिए सफेद मूसली काफी उपयोगी मानी जाती है। इसमें बड़ी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, फाइवर, प्रोटीन, सोडियम, कैशियम, मैग्नीशियम, जिंक फास्फोरस, सेपोनिन तत्व पाए जाते हैं
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3- सफेद मूसली की खेती कहाँ की जाती है?-
सफेद मूसली की खेती के लिए समशीतोष्ण क्षत्रों में सफलता पूर्वक की जा रही है। भारत में इसकी खेती पंजाब, गुजरात, यूपी, हिमाचल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, उड़ीसा राज्यों में प्रमुखता से की जा रही है। आगे आप जानने वाले है, सफेद मूसली की खेती करने का तरीका के बारे में
4- सफेद मूसली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी:-सफेद मूसली की अच्छी पैदावार के लिए रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। सफेद मूसली को काली चिकनी मिट्टी व लाल मिट्टी में भी उगाई जा सकती है। सफेद मूसली उगाने वाले खेत की मिट्टी का ph मान 7 से 7.5 के बीच में होना चाहिए, इससे अधिक ph मान वाली मिट्टी में उगाने से छारीय गुणों की अधिकता पाई जाती है जो अच्छा नहीं माना जाता। यदि किसान भाई इस तरह की मिट्टी में मूसली की खेती करते हैं, तो आप को पैदावार व इसकी गुणवत्ता दोनों में इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। प्रिय किसान भाइयों मिट्टी का चयन करते वलत इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।सफेद मूसली की खेती का तरीका।
5- सफेद मूसली की खेती के लिए भूमि का चयन:- इसकी खेती करने के लिए अच्छी जल निकासी वे भूमि की आवश्यकता होती है, क्योंकि जल भराव वाली भूमि में फसल में रोग का खतरा बना रहता है। रोग लगने की दशा में पैदावार में हानि हो सकती है। इसकी फसल को उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है। जिससे इसकी अच्छी पैदावार ली जा सकती है। वही इसकी खेती के लिए पथरीली भूमि का चयन करने से बचना चाहिए, क्योंकि मूसली की जड़ें अच्छे से विकास नहीं कर पातीं और इस कारण पैदावारमें हानि उठानी पड़ सकती है।'सफेस मूसली की खेती कैसे करें'
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6- सफेद मूसली की खेती के लिए जलवायु व तापमान:- सफेद मूसली की खेती के लिए गर्म व समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है।
मूसली की खेती वर्षाकाल के मौसम में कई जाती है। मौसम का तापमान प्रारम्भ में 20 से 25℃ अच्छा रहता है। इसकी खेती के लिए विशेष तापमान की आवश्यकता नहीं होती।
इसकी अच्छी पैदावार के लिए आर्द्र और 500 से 800 मिलीमीटर वारिश की आवश्यकता होती है।
7- सफेद मूसली के खेत मि तैयारी:- सफेद मूसली की खेती की तैयारी के लिए अधिक जुताई की जरूरत नहीं होती। सफेद मूसली को खेत में लगाने से पहले 2 से 3 बार अच्छे से जुताई की आवश्यकता होती है। जुताई करने के बाद खेत को ऐसे ही खुला छोड़ दें। इसके बाद लगभग 15 दिनों के बाद प्रति एकड़ 15 से 18 ट्राली गोबर की साड़ी खाद खेत में अवस्य डालें। खाद को डालने के बाद खेत में अच्छे से चारों तरफ विखेर दें व इससे पानी भरकर पलेवा करदें, जब खेत की मिट्टी सफेद दिखने लगे तब 1 से 2 बार अच्छे से जुताई करें।
8- सफेद मूसली की उन्नत किस्में:- किसी भी अच्छी पैदावार के लिए उस फसल का बीज उन्नत किस्म का होना अति आवश्यक हो जाता है। यहाँ कुछ किस्मों के विषय में जानकारी दी जा रही है, जो इस प्रकार से हैं--सफेद मूसली की खेती का तरीका।
सफेद मूसली की कई किस्में भारत में उपलब्ध हैं, जिन्हें चार भागों में बांटा गया है।
क्लोरोफाइटॉम एटेनुएटम।
क्लोरोफाइटम वोरोविलिएनम।
क्लोरोफाइटम ट्यूवरोजम।
क्लोरोफाइटम बोरिमिलियनम।
इन प्रजातियों के अतिरिक्त भी इसकी अन्य प्रजातियां पाई जातीं हैं। मुख्य प्रजातियां इस प्रकार हैं--
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A- MCB- 405:- सफेद मूसलों की इस किस्म में जड़ों की मोटाई अन्य की अपेक्षा अधिक होती है। इस किस्म के फलों के छिलके भी बहुत तेजी के साथ उतर जाते हैं। इससे प्राप्त सूखी हुई सफेद मूसली की उपज प्रति एकड़ खेत से 9 से 10 कुंतल की हो जाती है।'सफेस मूसली की खेती कैसे करें'
B- BDM 13 व 14:- मूसली की यह किस्म पैदावार के हिसाब से काफी अच्छी मानी जाती है। इसकी फसल या जड़ों से छिलका काफी आसानी से निकल जाता है। इस किस्म में जड़ों की मोटाई भी आसमान होती है। इस किस्म का बाजार भाव भी उच्च रहता है। इसके एक जड़ में लगभग 40 से 45 ट्यूवर्स तक मिल जाते हैं। इस किस्म की पैदावार प्रति एकड़ खेत से 5 से 6 कुन्तल तक कि मिल जाती है।
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9- सफेद मूसली के बोवाई का उचित समय व तरीका:- सफेद मूसली की बोवाई का उचित समय जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के माह तक का समय अच्छा माना जाता है। इस समयावधि में वारिश होने के कारण इसके पौधे को विकास करने में आसानी होती है। सफेद मूसली के खेत में बीजों की रोपाई में लगने वाले बीज की मात्रा 3 से 4 कुंतल प्रति एकड़ तक की आवश्यकता होती है। बीजों को बोवाई से पहले गोमूत्र से उपचारित किया जाना चाहिए। इस कार्य के लिए गोमूत्र को 10:1 का रेशियो रखें। बीजों को 2 से 3 घण्टे के लिए इसी घोल में डाल कर रखें। इसके बाद बीजों को खेत में रोपाई करदें।
सफेद मूसली की रोपाई पन्तियों में की जाती है। दो पन्तियों के बीच की दूरी कम से कम 20 सेमी की होनी चाहिए। बीज से बीज की अधिकतम दूरी 10 सेंटीमीटर की होनी चाहिए। बीजो की रोपाई करते समय 1 गुच्छे में कम से कम 2 से 3 फिंगर होने ही चाहिए। रोपाई करने के बाद इन गड्ढों को मिट्टी से ढक देना होता है। जिससे फिंगर्स को कोई नुकशान ना हो।
Safed Musli Farming10- सफेद मूसली के खेत में उर्बरक कई मात्रा व सिचाई व्यवस्था:- सफेद मूसली के फसल को अधिक सिचाई की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि यह एक औषधीय फसल होने से इसमें अधिक रासायनिकों के उपयोग करने से फसल मि गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। जिससे इसकी फसल को अधिक मूल्य प्राप्त नहीं होता। इसकी फसल को उर्बरक के स्थान पर गोबर मि खाद व वर्मी कम्पोस्ट का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। इन खादों के उपयोग से फसल को फंगल रोग से भी रक्षा होती है। खेत में बीजों को स्तापित करने के बाद सिचाई कर देने से पौधे अच्छे से ग्रोथ पकड़ लेते हैं। जुलाई से सितंबर के माह में आवयकता होने पर ही सिचाई करनी चाहिए।'सफेस मूसली की खेती कैसे करें'
11- खरपतवार नियंत्रण करना:- फसल चाहे जो भी हो खरपतवार होने पर फसल की पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं इसलिए समय रहते खरपतवारों पर नियंत्रण किया जाना अति आवश्यक हो जाता है इसके लिए फसल मि अधिक देख रेख की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए कि मूसली की फसल एक जड़ युक्त फसल है इसकी जड़ों को बचाना आवश्यक होता है। इसके लिए बोवाई से 10 से 15 दिनों के बाद निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए। इस समय में यदि खेतमें खरपतवार दिखते हैं तो उन्हें हाथ से निकालते रहना चाहिए।सफेद मूसली की खेती का तरीका। 'सफेद मूसली का भाव'
12- मूसली की फसल में लगने वाले रोग व उपचार:- ज्यादातर मूसली की फसल में रोगों का प्रकोप देखने को नहीं मिलते। मूसली के बीजों को रोपाई से पहले उपचारित नहीं किया गया तो पौधों में फफूंदी व कवक जैसे रोग नजर आ सकते हैं। इस प्रकार के रोगों का वाहक कीटों के द्वारा हिने वाला रोग है। इसकी रोकथाम के लिए खरपतवारों पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। फफूंदी व कवक रोगों के रोकथाम के लिए पौधों पर बायोधन दावा का उचित मात्रा में छिड़काव करते रहना चाहिए। यदि इससे भी रोग कंट्रोल न हो तो डाईकोडर्मा की 3 से 3.5 किलो की मात्रा को खाद में मिलाकर छिड़काव करें।
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13- सफेद मूसली की फसल की खुदाई व साफ सफाई करन:- सफेद मूसली की फसल नवम्बर से दिसम्बर माह के।प्रारम्भ में तैयार हो जाती है। किन्तु खुदाई करने से पहले यह जाँच आवश्यक करें कि सफल पूर्व रूप से पककर तैया हुई है या नहीं। जाँच करें मि पौधे की पत्तियों का रंग हल्का पीला पड़ा है या नहीं, इस अवस्था में पत्तियों सूखकर पीली पड़ जातीं हैं, और छिलका की कठोर हो जाता है। इसके अलावा जड़ों का रंग भी हल्का सफेद दिखने लगता है।'सफेस मूसली की खेती कैसे करें'
जाँच करने के बाद यदि फसल में सबकुछ ठीक-ठाक है तो खेत में हल्की सिचाई अवस्य करदें इससे मूसली की जड़ों की निकाले में असुविधा ना हो। फसल तैयार होने के 2 माह तक जड़ी की खोदाई अवस्य कर लेनी चाहिए, तबतम इसकी द जड़ें पूर्ण रूप से सूख कर तैया हो जाती हैं। मूसली की जड़ों का ऊपरी भाग मो हटा कर दें ईसा इसलिए कि जड़ी को निकालने लर जड़ें टूटेंगी नहीं। नुकशान भी कम होगा।
मूसली की जड़ों को खेत से निकालने के पश्चात किसी धारदार हतियार से अंगुलिनुमा जड़ों को अलग कर लें, इस क्रिया के बाद अलग की हुई जड़ों को पानी में डालकर मिट्टी को हटा कर साफ मर लिनी होतीं हैं। इतना करने के बाद एक चाको की सहायता से इसके छिलके को निकाल दें। साफ जड़ों को फिर एक बार पानी में डालकर अच्छे से धुलाई करदें। धुली हुई जड़ों को धूप में 3 से 4 दिन सूखने के लिए रख दें। अब पूर्ण रूप से बाजार में बिक्री के किये तैयार है आप की मूसली।
14- सफेद मूसली की बाजार कीमत व मुनाफा:-
सफेद मूसली की जड़ों की तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। ये तीन श्रेणियां- लम्बी, मोती , और कड़क। अच्छी पहचान के लिए सफेद मूसली को दांतों से दवाने पर दांतों में चिपक जाती है। बाजार में अच्छी किस्म की मूसली का भाव 1000 से 1400 रुपये प्रति किलो तक के बिक जाती है। वही छोटी मूसली का भाव 700 से 800 रुपये प्रति किलो के भाव बिक मिल जाता है। वही हल्की किस्म का भाव 400 रुपये तक का होता है। किसानों को कोशिश करनी चाहिए कि अच्छी आमदनी अमान के लिए अच्छी किस्म वाली सफेद मूसली को ही खेत में लगाये ताकि मुनाफा अच्छा मिल सके।
15- प्रति एकड़ सफेद मूसली की लागत:-
सफेद मूसली की उन्नत खेत की प्रति एकड़ लागत 4 से 5 लाख तक की आ जाती है। वही यदि उपज का भाव औसतन 1.3 लाख प्रति कुंतल तक की भी मिल जाती है और प्रति एकड़ उपज औसतन 14 से 14 कुन्तल भी रहती है तो इस हिसाब से 16 से 17 लाख रुपये प्राप्त होता है। यदि इसमें से लागत को निकाल दें तो प्रति एकड़ खेत से मोटा माटी मुनाफा 8 से 9 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हो जाता है।
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