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यहाँ समझें तिल की उन्नत खेती का तरीका।
Understand here the method of advanced cultivation of sesame.
नमस्कार दोस्तों: किसान बाबा हिंदी न्यूज़ में आप का स्वागत है,आज के इस लेख के माध्यम से बताने बाले हैं कि तिल की उन्नत खेती कैसे की जाती है,कम लागत से कैसे अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। यदि आप भी तिल की खेती करना चाहते हो तो बने रहिये हमारे साथ और ब्लॉग को पूरा अवस्य पढ़ें।
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                                   तिल की उन्नत खेती का तरीका

सामान्य विवरण:-तिल भारत में उगाये जाने वाली तिलहन फसलों में मुख्य है,जो हमारे देश भारत में प्राचीनकाल से उगायीं जा रही है।तिल की फसल ग्रीष्म ऋतु में उगाईं जाने वाली फसल है,जो हमारे देश भारत के कई राज्यों में उगाई जाती है,जैसे- उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश, विहार, राजस्थान,हिमाचल, गुजरात व अन्य राज्यों में इसकी खेती की जा रही है।
तिल की खेती ज्यादातर मिश्रित तरीके से की जाती है,गंगा का मैदानी इलाकों में इसे अरहर,बाजरा,मक्का में साथ उगाया जाता है,तिल की उत्पादकता कम होने के कारण किसान इसे अधिक क्षत्रफल में उगाना पसन्द नहीं करते है।
'यहाँ समझें तिल की उन्नत खेती का तरीका'

1-तिल के औषधीय गुण:-आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के अनुसार सभी तिलों में काले तिल अधिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं।सामान्य तिल में भी कई औषधीय गुण होते हैं, जैसे-,प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट,आयरन, फाइवर, मैग्नीशियम, कैल्शियम,पोटेशियम, फास्फोरस, जिंक,फैटी एसिड,कॉपर, फोलेट,थायमिन,आदि उच्च मात्रा में मौजूद है,जो हमारे शरीर के लिए काफी लाभदायक होते हैं।

2-तिल की उन्नत खेती के लिए उचित जलवायु:-तिल की अच्छी पैदावार के लिए गर्म जलवायु का लंबा मौसम उत्तम रहता है।तिल की अच्छी पैदावार के लिए 25℃ से अधिक तापमान अच्छा रहता है,इससे निम्न तापमान होने की दशा में तिल का अंकुरण ठीक से नहीं हो पाता है। जहाँ वर्षा 120 सेंटीमीटर से अधिक वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहता है, अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में फफूँद रोग का प्रकोप अधिक रहता है। इसकी खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली भूम अच्छी रहती है।'यहाँ समझें तिल की उन्नत खेती का तरीका'
3-तिल की खेती के लिए भूम का चयन:-बिना जल भराव वाली भूमि अथवा उचित जलनिकासी वाली भूमि हो तो सभी तरह की भूमि में इसकी खेती की जा सकती है,तिल की खेती के लिए दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है,इसकी अच्छी पैदावार के लिए बलुई क्षारीय भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती। तिल की खेती 6 से 8 ph मान वाली मिट्टी में इसकी खेती अच्छी होती है। इन कारणों को ध्यान में रखकर तिल की खेती करते हैं तो आप को अधिक पैदावार मिलती है।

4-तिल की उन्नत खेती के लिए खेत की तैयारी करना:-खेत को सर्बप्राथम पलटा हल से एक जुताई करदेनी होती है,इसके बाद 2 से 3 जुताई रोटावेटर हल के करनी चाहिए, जिससे मिट्टी के दिल टूट कर भुरभुरी हो जानी चाहिए,क्योंकि तिल के बीज अधिक छूटे होने से मिट्टी भुरभुरी होना अति आवश्यक होता है। खेत की जुताई पर्याप्त नमी में ही कि जानी चाहिए, ताकि तिल के बीज आसानी से उग सकें पर्याप्त नमी न होने की अवस्था में खेत का पलेवा कर जुताई की जानी चाहिए। अंतिम जुताई से पूर्व खेत में पर्याप्त गोबर की खेद डालनी चाहिए।'यहाँ समझें तिल की उन्नत खेती का तरीका'

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                                  तिल की उन्नत खेती का तरीका
5-तिल की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्मों के चयन:-फसल की अच्छी पैदावार उसके बोई जाने वाली बीज की किस्म से तय होती है, इसलिए फसल की बोवाई प्रमाणित बीज से ही कि जानी चाहिए, यहाँ कुछ किस्मों की जानकारी दी जा रही है जो इस प्रकार से है--
राजस्थानी तिल 346,गुजरात तिल-4,टी-13,टी एल के-4,टी-78,शेखर,हरियाणवी तिल यह तिल की प्रमुख उन्नतशील किस्में है।

6-तिल के खेत में बीज की मात्रा एवं उपचार:-तिल एक अति छोटा दाना होने के कारण यह खेत में कम मात्रा में गिराया जाता है।शाखा वाली किस्मों के लिए तिल की मात्रा 2 से 2.5 किलोग्राम व बिना शाखा वाली किस्मों के लिए 2.5 से 3 किलोग्राम बीज ही प्रति हेक्टेयर काफी होता है। खेत में बोवाई से पहले बीज को उपचारित अवस्य किया जाना चाहिए इसके लिए कार्बेंडाजिम के साथ थाइरम के घोल में बीज को उपचारित किया जाना चाहिए।
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10 से 12 लीटर पानी में घोल बनाकर बीज को उपचारित करें।वही फसल में कीटों के प्रकोप को नियंत्रण के लिए फारेस्ट की उचित मात्रा का उपयोग किया जाना चाहिए।खेत की बोवाई से पूर्व 3 किलोग्राम ड्राइकोडर्मा 5 से 6 कुन्तल गोबर की खाद में मिलाकर खेत में प्रयोग किया जाना चाहिए।

7-खेत में बीज बोने का तरीका:-जैसा आप को मालूम है कि तिल का बीज काफी छूटा होता है,बीने वक्त ध्यान देना होता है कि बीज अधिक गहराई पर नहीं पहुंचना चाहिए, इसकी बोवाई कम वर्षा वाले क्षेत्रों में 30×8 सेंटीमीटर करने से उत्पादन में बढ़ोतरी देखने को मिलती है,वही लाइन से लाइन की दूरी 25×8 सेंटीमीटर की रखनी चाहिए। इसा करने से खरपतवारों पर भी नियंत्रण में सुविधाजनक रहता है।'यहाँ समझें तिल की उन्नत खेती का तरीका'

8-तिल की बोवाई का उचित समय:-तिल की बोवाई उचित समय पर ही कि जानी चाहिए।अच्छी पैदावार के लिए जुलाई के प्रथम सप्ताह में बोवाई अवस्य कर देनी चाहिए,यदि किसी कारणवश बोवाई लेट की जाती है तो फसल के उत्पादन में 15 से 20 % की हानि देखने को मिल सकती है। खेत की बोवाई के समय तापमान 22 से 28℃ के बीच हो तो अच्छ रहता है।


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                                  तिल की उन्नत खेती का तरीका
9-तिल की खेती के लिए उचित खाद व उर्बरक की मात्रा:-फसल की अच्छी पैदावार से लिये खाद का अहम रॉल रहता है लेकिन खाद की मात्रा मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के आधार की तय की जानी चाहिए, इसके लिए मिट्टी की जाँच अवस्य करा लेनी चाहिए। सामान्य तौर पर अच्छी पैदावार के लिए 200 किलोग्राम जिप्सम का उपयोग किया जाना चाहिए, 2 टन गोबर की खाद व फास्फोरस विलय वैक्टेरिया 3 किलो प्रति एकड़ की दर से उपयोग किया जाना चाहिए। आप चाहे तो नीम की खली का भी उपयोग किया जा सकता है। तिल की अच्छी पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्रों में 30 से 35 किलो यूरिया,10 से 15 किलो फास्फोरस,10 से 12 किलो पोटाश,प्रति एकड़ खेत में देनी चाहिए। इस तत्वों के अतिरिक्त 5 से 8 किलो गंधक का भी उपयोग किया जाना चाहिए, इससे तिल की उन्नत पैदावार में वृद्धि देखने को मिलती है,इसके अलावा नाइट्रोजन की 20 से 25 किलो मात्रा बोवाई से 20 से 25 की के बाद फसल में मई जानी चाहिए।'यहाँ समझें तिल की उन्नत खेती का तरीका'

10-तिल के खेत की निराई गुड़ाई व्यवस्था:-जैसा कि तिल वरसात के मौसम की फसल होने की बजह से खेत में खरपतवारों को भी प्रकोप अधिक रहता है,इन खरपतवारों पर समय से नियंत्रण नहीं किया जाता तो फसल की पैदावार प्रभावित होती है ,पैदावार में गिरावट देखने को मिलती है। इस खरपतवारों को रोकने के ये बोवाई से 3 से सप्ताह बाद खेत की निराई गुड़ाई करके खरपतवार खेत से बाहर निकाल देने चाहिए। वही रासायनिक नियंत्रण के लिए एलोक्लोर 1किलो प्रति एकड़ की दर से बोवाई से पहले खेत में प्रयोग करें। अवश्यकता अनुसार खेत की निराई गुड़ाई करने रहना चाहिए।
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11-तिल के खेत में किट नियंत्रण:-
(A)-फली भेदक:-फली भेदक किट का प्रकोप जुलाई से सितम्बर तक देखने को मिलता है,इसके किट फलियों पत्तियों को हानि पहुंचाते हैं।जिससे पौधों की वृद्धि रुक जाती है।इस कीट का प्रकोप होने की दशा में कीटनाशक का उपयोग अवस्य किया जाना चाहिए।किट नियंत्रण के लिए क्यूनालफॉस 25 ई सी एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फूल के समय स्प्रे करना चाहिए,इसा ही स्प्रे पुनः15 से 20 दिन के अंतराल पर करें।

(B)-फली भेदक कीट के प्रकोप को नियंत्रण करने के लिए मूंग के साथ तिल की मिश्रित खेती की जानी चाहिए,ऐसा करने से कीटों के प्रकोप कम होने के साथ फसल की पैदावार में भी बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है।

(C)-कीट को रासायनिक नियंत्रण के लिए 
प्रोफेनोफोस 50 ई सी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ 35 से 54 दी कि अवस्था मे फसल पर स्प्रे करें इस दवा से अन्य कीटों पर नियंत्रण हो जाता है।

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                                   तिल की उन्नत खेती का तरीका
12-तिल के खेत में रोग नियंत्रण:-जैसा की फसल में रोगों का भी प्रकोप आता है ,यदि इसे जल्द नियंत्रण नहीं किया गया तो फसल की पैदावार पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है,यहां कुछ रोग व उसके उपायों की जानकारी दी जा रही है।
(A)-जड़ व तना सडन:-इस रोग से ग्रस्त पौधे की जड़ व तना सफेद पड़ जाते हैं।पौधे को पास व अति सूक्ष्म देखने से पौधा का सम्पूर्ण भाग पर दाने नजर आने लगते हैं,और पौधा की वृद्धि रोक जाती है उपचार ना किया जाए तो पौधा सूख का नष्ट हो जाता है।
उपाये:-इस रोग के नियंत्रण के लिए बोवाई से पहले खेत में 1ग्राम कार्बेंडाजिम 2 ग्राम थीरम की उचित मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के बाद बीज को खेत में बोवाई की जानी चाहिए, ऐसा करने से इस प्रकार के रोग मुक्त पौधे रहते हैं।'यहाँ समझें तिल की उन्नत खेती का तरीका'


(B)-झुलसा रोग:-इस रोग से ग्रस्त पौधे में पत्तियों पर छोटे छोटे सफेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं। ये धब्बे आकार में बड़े होकर पूरे पौधे को अपने गिरफ्त में ले लेता है,और पौधे को झुलसा देता है,प्रकोप अधिक होने पर तने भी रोग ग्रस्त हो जाते हैं।
इस रोग के उपाए:-फसल की नियमित देखरेख करते रहें यदि झुलसा रोग नजर आए तो तुरंत 
जाईनेब 1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से स्प्रे करें,तथा दूसरी बार 20 दिन के बाद स्प्रे करें।

(C)-लीफ कर्ल:-तिल के खेत में लगने वाला यह रोग विषाणु जनत रोग है,यह रोग मक्खियों से फैलता है,रोग ग्रस्त पौधे की पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जातीं हैं,इस रोग का प्रकोप अधिक होने पर पौधे की हिने वाली वृद्धि रुक जाती है,पौधे पर विना फल आये ही पौधा सूख जाता है,यदि समय रहते इस रोग का उपाय ना किया जाए तो फसल की पैदावार में काफी हानि होती है।
इस रोग के उपाय:-इस रोग से ग्रस्त पौधे को नजर आते ही खेत से बाहर कर नष्ट कर देना चाहिए,इसके साथ ही मिथाइल डीमेटॉन 25 ई सी, 1 मिलीलीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टयर पानी में घोल बनाकर खेत में स्प्रे अवस्य करें ताकि इस रोग से नियंत्रण किया जा सके।

13-तिल की फसल की कटाई:-फसल पकने पर पौधे के सम्पूर्ण भाग का रंग हल्का पीला पड़ जाता है,यह अवस्था फसल की कटाई का उपयुक्त समय होता है,यदि फसल की इस अवस्था में आप कटाई नहीं करते तो इसकी फलियाँ चटकने लगतीं हैं और फसल की पैदावार घट जाती है। अतः इस अवधि में कटाई आरम्भ कर देनी चाहिए। फसल को 2 से 4 दिनों तक अच्छे से सूख जाने के बाद गड़ाई की जानी चाहिए जिससे फलियों से बीज बाहर निकाला जा सके। बोझ को धूप में सुखाकर  भंडारण किया जा सकता है यह आप चाहते जितने समय के लिए भण्डार कर सकते है यह फसल खराब नहीं होती।

14-तिल की फसल की पैदावार:-तिल की फसल की नियमित व अच्छे से देखरेख करने पर तिल की पैदावार 6 से 7 कुन्तल प्रति एकड़ की आसानी से मिल जाती है जो किसानों अच्छा मुनाफा मिल जाता है इसकी खेती में अन्य की भांति कम खर्चा होता है।



किसान बाबा हिंदी न्यूज़

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