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उडद की खेती की पूरी जानकारी, जाने कब और कैसे करें खेती

Complete information about urad cultivation, know when and how to do farming

उडद की खेती की पूरी जानकारी
                                     उडद की खेती की जानकारी

नमस्कार दोस्तों: किसान बाबा हिंदी न्यूज़ में आप का स्वागत है,आज के इस ब्लॉग के माध्यम में उडद की खेती के विषय में जानकारी देने वाले हैं तो बने रहिये हमारे साथ और ब्लॉग को पूरा अवस्य पढ़ें 

उडद दलहन की महत्वपूर्ण फसल है,उडद की खेती से अल्प समय मे किसान भाई अधिक मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। भारत में उड़द की खेती माष माह में बोवाई प्रारम्भ हो जाती है,इसे उरद के उप नाम से भी जानी जाती है। उड़द की फसल में अन्य फसलों की तरह कम लागत आती है। इसकी फसल में सिचाई की कम आवस्यकता होती है।यह ग्रीष्म ऋतु की फसल है। भारत में इसकी खेती गेंहूँ की कटाई के बाद की जाने वाली वैकल्पिक फसल है।'उडद की खेती की पूरी जानकारी'

1-उडद की दाल में पौष्टिक तत्व:-प्रोटीन, विटामिन बी काम्प्लेक्स,कैल्शियम, फाइवर, कार्बोहाइड्रेट काफी मात्रा में मौजूद हैं इसके अलावा उडद की दाल में अन्य दालों की तुलना में लाइसीन,फास्फोरस अम्ल,एमिनो एसिड, ल्यूसीन, आरजिनिन जैसे तत्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं।

इसका इस्तेमाल डाल के अलावा इससे कई प्रकार के व्यंजन भी बनाये जाते हैं जैसे उडद का हलवा,इमरती,उडद के पापड़ जो बाजार में इन प्रोडेट्स की काफी मांग रहती है। इन सबके अलावा उडद के हरे पौधों से पशुओं के लिए गुड़कारी चार भी प्राप्त होता है। इस ही खेत में लगातार खेती करने से खेत की उर्बरकता शक्ति में इज़ाफ़ा होता है।

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2-उडद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु:-उडद की फसल के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। उडद के पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए 25 से 30℃ तक का तापमान उचित रहता है,वही 600 से 800 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती उपयुक्त रहती है,जब पौधों पर फूल आने की अवस्था में वर्षा हानिकारक होती है,ऐसा होने पर उडद की पैदावार में हानि देखने को मिलती है

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3-उडद की उन्नत किस्में:-भारत में इस समय उडद की कई प्रजातियां मौजूद हैं,जो जलवायु व अधिक पैदावार के लिए विकसित की गायीं हैं जो निम्न प्रकार हैं-

3- Improved varieties of urad: - There are many species of urad present in India, which have been developed for the climate and high yields which are as follows-

(A)-पन्त-19:-उडद की इस किस्म को पूर्णरूप से तैयार होने में 85 से 90 दिनों का समय लगता है।इस किस्म के पौधों में पिले रंग का मौजिकरोग देखने को मिलता है। इस किस्म के पौधे लम्बाई में सामान्य आकार के होते हैं। भारत में इसकी फसल मध्य व पश्चिमी क्षेत्रों में कई जाती है। इस किस्म की पैदावार प्रति एकड़ 5 से 6 कुंतल की उपज आसानी से मिल जाती है।


(B)-टी-19:-उडद की यह किस्म अल्प अवधि की किस्म है यह कम समय में पककर तैयार हो जाती है।इस किस्म को तैयार होने में 70 से 75 दिनों का समय लगता है। इस किस्म के दानों का आकार छूट व रंग काला होता है। यह किस्म भी प्रति एकड़ 5 से 6 कुन्तल की उपज मिल जाती है। इसकी खेती दो मौसमों में कई जा सकती है।

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(C) आर.बी.यू.-38:-उडद की यह किस्म कम समय में तैयार होने वाली किस्म है।जो बीज रोपाई के 75 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।इस किस्म का उतपादन 5 से 6 कुन्तल प्रति एकड़ की मिल जाती है। इस पौधे की पत्तियों में धब्बा देखने को नहीं मिलता।इस किस्म का दान भी अन्य किस्मों से कुछ बड़ा होता है।

(D)-कृष्णा-उडद की इस किस्म के पौधे कम समय में फलियाँ देने के लिए तैयार हो जाते हैं जो बोवाई से 90 से 95 दिनों में पैदावार देने लगते हैं।इस किस्म से प्राप्त दानों का रंग भूरा होता है।उडद की यह किस्म प्रति एकड़ के हिसाब से 6 से 6.5 कुन्तल तक कि पैदावार मिल जाती है।

4-उडद के खेत की तैयारी व उर्बरक:-उडद के खेत की बोवाई से पहले खेत की जुताई व उर्बरक डालकर खेत को तैयार किया जाता है।इसके लिए खेत को पहले गहरी जुताई कर देनी हिती है,जुताई के बाद कुछ दिनों के लिए खेत को खुला छोड़ दिया जाता है,इसके बाद खेत में गोबर की सड़ी खाद डालकर खेत में अच्छी तरह फैला दिया जाना चाहिए,इसके बाद दो से तीन जुताई कर देनी चाहिए। यदि आप चाहे तो रासायनिक उर्वरकों का भी उपयोग कर अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

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की खेती बोवाई का  उचित समय व तरीका:-खेत में बीज को डालने से पहले बीज को कार्बेंडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित किया जाना चाहिए जिससे भूमिगत कीटों से सुरक्षित किया जा सके। यदि रोपाई राजोवियम विधि से करने पर पैदावार में वृद्धि देखने को मिलती है। रायजोबियम कल्चर विधि से रोपाई से पहले राइजोबियम की उचित मात्रा गुण और पानी के घोल तैयार कर लिया जाता है। इस घोल में बीजों को 8 से 10 घण्टे के लिए डुबोकर रख दिया जाता है। बीजों की रोपाई जायद के मौसम में कई जानी चाहिए। वही एक एकड़ खेत में 8 से 10 किलो उडद के बीजों की आवश्यकता होती है।

उडद के बीजों को पन्ति में लगाने से पैदावार में बढ़ोतरी देखने को मिलती है। लाइन से लाइन में बोवाई करने के लिए मशीनों का उपयोग किया जाता है। पन्तियों से पन्तियों के बीच की दूरी 10 से 12 सेंटीमीटर की रखनी चाहिए,और बीज से बीज की दूरी 5 से 6 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। खरीब की अच्छी पैदावार के लिए उडद की बोवाई जून के महीने में कई जानी चाहिए। जायद की फसल के लिए मार्च से अप्रैल के मध्य बोवाई की जानी चाहिए इसा करने पर पैदावार में बढ़ोतरी होती है।

6-उडद के खेत की सिचाई व्यवस्था:-उडद की फसल को कम सिचाई की आवश्यकता होती है।इसकी पहली सिचाई 20 से 25 दिन के बाद कर देनी चाहिए,इसके बाद 15 दिन के अंतराल पर 2 सिचाई करनी होतीं हैं। पौधों पर फली आने के दरमियान खेत में नमी होनी आवश्यक होती है सयम पर सिचाई करते रहने से फलियों व दानों के आकार में वृद्धि होती है,और उड़द की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।

उडद की खेती की पूरी जानकारी
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7-उडद के खेत में खरपतवार नियंत्रण:-उडद के खेत में बोवाई के 10 से 15 दिनों में खरपतवार का प्रकोप देखने को मिलता है यदि समय पर नियंत्रण नहीं किया जाता फसल की पैदावार में हानि देखने को मिलती है । खरपतवारों पर नियंत्रण प्राकृतिक व रासायनिक दोनों विधियों से किया जा सकता है। रासायनिक नियंत्रण के लिए बोवाई के तुरंत बाद पेंडमेथालिन की उचित मात्रा का छिड़काव कर देना चाहिए।'उडद की खेती की पूरी जानकारी'

वही प्राकृतिक विधियों में निरन्तर निराई गुड़ाई की आवश्यकता होती है,इसके द्वारा खेत से खरपतवार को बाहर निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए। खेत की पहली निराई गुड़ाई बोवाई से 15 दिन के बाद अवस्य की जानी चाहिए। इसके बाद 20 - 20 दिन के अंतराल पर निराई गुड़ाई की जानी चाहिए।

8-उडद के खेत में लगने वाले रोग व उपचार:-उडद के खेत में रोग का भय बना रहता है यदि इसका उचित उपचार नहीं किया गया तो उडद की पैदावार में 15 से 20 % की हानि होना स्वाभाविक है यहाँ कुछ प्रमुख रोगों के बारे में जानकारी दी जा रही है साथ ही उचित उपचार भी बताया गया है जो इस प्रकार है-

(A)-फली भेदक रोग:-फली भेदक कीट फली में अंदर घुसकर दानों को हानि पहुंचाने का कार्य करतीं के इससे पैदावार में नुकसान होता है।फली भेदक रोग के बचाओ के लिए उडद के पौधों पर शुरुआत में ही मोनोक्रोटोफोस की उचित मात्रा का स्प्रे कर देना चाहिए। प्रकोप अधिक है तो इस दवा का 2 से 3 बार खेत में स्प्रे किया जाना चाहिए।

(B)-सफेद मक्खी रोग:-उड़द की फसल में लगने वाला यह रोग पौधों की पत्तियों पर आक्रमण करता है। जिससे पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं इस रोग का कीट पौधों की नाजुक भाग को नुकसान पहुंचता है। इस किस्म के रोग से बचाओ के लिए डायमिठोएड दवा का उचित अनुपात में लेकर घोल बनाकर खेत में स्प्रे किया जाना चाहिए।

(C)-पिला चितेरी रोग:-उडद की फसल में लगने वाला यह एक विषाणु जनित रोग है। इस रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है।इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। इस किस्म का रोग एक से दूसरे पौधे में तीव्र गति से फैलता है,इससे फसल नष्ट होने की सम्भावना बड़ जाती है। इस रोग की रोकथाम के लिए डायमिठोएट की उचित मात्रा का घोल बनाकर खेत में स्प्रे किया जाना चाहिए।

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9-उडद की फसल की कटाई :-जैसा कि ऊपर बताया गया है कि बोवाई के 80 से 85 दिन बाद फसल पककर तैयार हो जाती है। फसल पकने के उपरांत पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगतीं हैं और फलियों का रंग काला हो जाता है इस अवस्था में पौधों को जड़ से काट लिया जाता है। फसल के काट लेने के बाद एक स्थान पर इकट्ठा कर सूखा लिया जाना चाहिए। सूखी हुई फसल को थ्रेशर की सहायता से दाने अलग कर भण्डारण कर लिया जा सकता है।'उडद की खेती की पूरी जानकारी'

10-कुल पैदावार एवम लाभ:-उदाद के पौधे एक एकड़ खेत से लगभग 6 से 6.5 कुन्तल तक का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। जिसका बाजार भाव 7500 रुपये प्रति कुन्तल तक का मिल जाता है।किसान भाई इसकी एक बार की खेती से एक एकड़ खेत से 45000 से 48000 तक कि कमाई एक एकड़ खेत से आसानी से कर सकते हैं।


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