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 तेजेन्द्र कुमार सिंह:

आलू की वैज्ञानिक खेती कैसे करे

             आलू की वैज्ञानिक खेती

भारत में आलू को सर्बधिक उपयोग की जाने वाली सब्जी में गिनती की जाती है। यहां आलू की फसल का कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है।आलू का व्यवसाय के रूप में भी उपयोग बहुतायात देखने को मिल रहा है जैसे आलू चिप्स,आलू भुजिया,आलू से बना अमोसा, आलू टिक्की,विभिन्न प्रकार की नमकीन, आलू पापड़ और भी बहुत व्यंजन बनाये जाते हैं। वही इससे स्टार्च,एल्कोहल भी प्राप्त किया जाता है।भातर में आलू की बम्पर पैदावार की जाती है।

आलू की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इस लेख के माध्यम से "आलू की वैज्ञानिक खेती कैसे करें"में पूरी जानकारी दी जाएगी तो बने रहे हमारे साथ लेख को पूरा अवश्य पढ़ें।

1-आलू की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी और जलवायु:-आलू की बम्पर पैदावार के लिए दोमट मिट्टी, बलुई मिट्टी जिसमे उर्बरक शक्ति अच्छी हो उत्तम मानी जाती है। भूमि का चयन करते समय ध्यान देना चाहिए कि खेत में जल निकासी की व्यवस्था हो पानी का भराव नहीं होना चाहिए आलू की खेती के लिए उत्तम रहता है। आलू की खेती में उचित तापमान का भी बहुत महत्व है।आलू की अच्छी पैदावार के किये तापमान15 से 20 सेंटीग्रेट उचित रहता है इससे अधिक तापमान आलू के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।

2-आलू के खेत की तैयारी कैसे करें:-भातर में अधिकांश आलू धान की कटाई के बाद कि जाति है ।तो धान कटने के बाद खेत को 2 बार अच्छी तरह जुताई कर देनी चाहिए। जुताई के बाद पलेवा कर दे। हल्की नमी में 3 से 4 गहरी जुताई करने से मिट्टी भुरभुरी हो जानी चाहिए। हर बार की जुताई के बाद पाता अवस्य दे ताकि खेत समतल हो जाये।इससे खेत में नमी का भी संरक्षण हो जाता है।"आलू की वैज्ञानिक खेती कैसे करें" में खेत की अंतिम तैयारी करने पूर्व एक एकड़ में 10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद बराबर खेत में मिलाये जिससे आलू की पैदावार में वृद्धि होती है।यदि खेत में दीमक का प्रकोप भी है तो इस दशा में एक एकड़ खेत में 12 से 15 किलो  मिट्टी में अवस्य मिलाये।

3-आलू की अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्में:-आलू की उन्नत तकनीक के लिए अच्छे किस्म के बीज की उपलब्धता होनी चाहिए। जिससे पैदावार अच्छी मिल सके "आलू की वैज्ञानिक खेती कैसे करें" में कुछ उन्नत किस्में आगे बतायीं गईं है जी निम्न प्रकार से हैं।

(A)आलू की अगैती किस्में:-आलू की अगैती किस्मों में जो प्रमुख है बो हैं-कुफरी कुवेर,कुफरी चन्द्रमुखी,व कुफरी चन्द्रबहार इनमे भी पैदावार के लिहाज से चंद्रमुखी प्रमुख किस्म है। ये किस्में 90 से 100 सिन में तैयार हो जाती हैं और अच्छा मुनाफा देने वाली किस्में हैं। ये किस्में तीन फसली खेती में भी बम्पर पैदावार देने वाली किस्में हैं।

(B)आलू की मध्यम समयावधि की किस्में:-"आलू की वैज्ञानिक खेती कर करे"में माध्यम अवधि की किस्में बताई गई हैं जो निम्न प्रकार से हैं-कुफरी लालिमा,कुफरी ज्योति, बादशाह प्रमुख किस्में हैं अगर इनके समय अवधि की बात की जाए तो ये पहलें 100 से 110 दिनों में पक कर तैयार हो जाती हैं इन किस्मों की पैदावार भी उम्दा होती है।

(C)-आलू की नवम्बर (लेट)बोवाई वाली किस्में:-किसान भाई किसी कारणवश आलू की खेती समय से बोवाई न कर सके तो इन किस्मो।से अच्छी पैदावार ले सकते हैं जो निम्न प्रकार से हैं-सी-40,कुफरी 37,और कुफरी सिंदूरी प्रमुख किस्में हैं जिन्हें पिछैती किस्में भी कहते है। इन किस्मों से समय का कम प्रभाव देखने को मिलता है।

            आलू की वैज्ञानिक खेती

4-आलू की खेती के लिए उपयुक्त उर्बरक व खाद:-जैसा कि "आलू की वैज्ञानिक खेती कैसे करें"में अब नम्बर आता है खेत में खाद डालने का तो इसके लिए जुताई के अंतिम समय में 150 कुन्तल गोबर की खाद खेत में अच्छी तरह खेत में मिलानी चाहिए। 140 किलो नाइट्रोजन,50 किलो फास्फोरस,20 किलो जिंक,100 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालनी चाहिए।

वही यूरिया 50 किलो 2 बैग अमोनियाँ सल्फेट खेत में डाल दें। इसके बाद यूरिया 50 किलो मिट्टी चढ़ते समय देनी चाहिए।इतना सब कुछ देने के बाद आलू।की फसल की पैदावार अच्छी देखने।को मिलेगी।

5-आलू की खेती की बोवाई का उचित समय:-आलू की अच्छी पैदावार के लिए समय का अपना महत्व होता है इससे पैदावार में भी बढ़ोत्तरी होती है।आलू की बोवाई के।समय मौसम।का।तापमान शुरू में 25 और न्यूनतम 18 के।मध्य होना चाहिए। आलू की खेती अक्टूबर के प्रारंभिक सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह के बीच अवस्य कर देनी चाहिए। इस समय अवधि में आलू की बोवाई करने से पैदावार में वृद्धि देखने को मिलती है और रोगों का प्रकोप भी कम रहता है।

6-आलू का बीज और बोवाई का तरीका:-आलू की वैज्ञानिक व अच्छी पैदावार के लिए बीज का स्वस्थ्य होना अति आवश्यक है। रोग मुक्त बीज का ही उपयोग किया जाना चाहिए बीज खरीदते वक्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि बीज अच्छा और प्रामाणिक एजेंसी से खरीदा गया हो। बीजों लो बोवाई से पहले पूर्ण अंकुरित कर लेना चाहिए। इसका फायदा यह होगा कि इसमें कल्ले जल्दी निकलेंगे और फसल अच्छी होगी।

देखा गया है कि आलू के बीजों का आकार सामान्य आकर से बड़ा होने पर भी पूरा डाल दिया जाता है जो कि तरीका गलत है बड़े आकार के आलू को आवस्यकता अनुस काट लेना उचित रहता है।कटे हुए बीज कन्दों को इंडोफिल एम45 के घोल में 15 मिनट तक डुबो कर रखें जिससे बीज उपचारित किया जा सकें। पानी की मात्रा होने पर बीजों को छाया में 10 घंटे के लिए डाल कर छोड़ दें।बीज उपचारित करने से आलू में फफूँद नही आती है। बड़े बीज कन्द आकर का होने पर अधिक मात्रा में गलता है और पैदावार भी अधिक होती है। छोटे कन्द आकार का बोझ कम लगता है और पैदावार भी कम ही देखने को मिलती है। मध्यम आकार का ही बीज का उपयोग करना चाहिए जिससे फसल।की।पैदावार भी अधिक हो।

यदि बोझ का भार 50 ग्राम तक का है तो एक एकड़ में तकरीबन 16 से 18 कुन्तल बीजों की आवश्यकता होती है।

जिस खेत में आलू की खेती की जा रही है उसे अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए। उसके बाल आलू की बोवाई के लिए 45 से 50 सेंटीमीटर मि सूरी पर मेंड़ बना देनी चाहिए। इन मेंड़ों पर 18 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर आलू को रखना चाहिए। बोवाई कर देने के बाद सिचाई के लिए स्थान निर्धारित किया जाना चाहिए। जिससे हर मेंड़ों तक पानी की पहुँच निर्धारित की जा सके ।

7-आलू के खेत की निराई गुड़ाई:-आलू को खेत में रखने के बाद अब समय आता है निराई और गुड़ाई करने का इसके लिए बोवाई के 24 से 28 दिन के बाद निराई कर खरपतवारों को निकाल देना चाहिए। निराई गुड़ाई से मिट्टी भुरभुरी की जानी चाहिए।अब यूरिया की 60 किलो।की मात्रा मिट्टी में मिलाकर पौधों की जड़ से।लगा देनी चाहिए। इससे खुला हुआ जड़ धूप के।सम्पर्क में आलू हरा पड़ने का डर रहता है।

इसी प्रकार से बिचबाच आलू की जड़ों को ढककर रखना चाहिए।खरपतवारों को रसायनों से रोकथाम करना चाहते हो तो उसके  पेंडमेथालिन 30 % 3 लीटर 1000 लीटर में घोल बनाकर बोवाई के 3 से 4 दिन बाद स्प्रे कर देना चाहिए। इस करने से खरपतवार का नियंत्रण हो सकेगा।

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8-आलू के खेत की सिचाई:-यह सब करने के बाद आलू खेत की  सिचाई बोवाई से 10 के।भीतर अवस्य करनी चाहिए। बाद में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिचाई करते रहना चाहिए। जब आलू की फसल पकाव की अवस्था में आ जाये तब सिचाई 15 दिन पहले बन्द कर देनी चाहिए। ध्यान रहे सिचाई करते वक्त पानी आधी मेंड़ तक ही जाना चाहिए

            आलू की वैज्ञानिक खेती

9-आलू की फसल में कीट एवं रोग नियंत्रण प्रबंधन:-फसल चाहे जो हो रोगों व कीटों के प्रकोप अधिकतर सभी में होता है ।आलू की फसल में रोगों व कीटों के नियंत्रण ना होने से अफल बर्बाद हो सकती है। लाही कीट आलू को अधिक नुकसान पहुंचाता है। यह कीट पत्तियों का रस चूसकर पौधे को हानि पहुंचाते हैं।"आलू की वैज्ञानिक खेती कैसे करें" में कीट नियंत्रण के उपाय बताए गए हैं।इन कीटों से बचने के लिए .1%  मेटासिस्टोक्स दो स्प्रे 10 - 15 दिन के अंतर से कर देना चाहिए। 
शीत ऋतु की फसल होने से आलू में झुलसा रोग भी देखने को मिलता है ।यह रोग भी फसल को हानि पहुंचता है।इसके नियंत्रण के लिए इंडोफिल एम45, 2%घोल का 15 -15 दिनों के अंतराल पर 2 छिड़काव अवस्य कर दें। रो व कीटों के नियंत्रण होने पर फसल पर इनका प्रभाव नहीं होगा और पैदावार भी अच्छी मिलेगी। रसायनों का उपयोग कम से कम कर यह स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक है इसका विशेष ध्यान रखें।
10-आलू की फसल को पाला से बचाने के उपाए:-लेट बोन बाली आलू की फसल में पाला का भी भय रहता है।अक्टूबर में बोनी होने पर जनवरी में फसल पकव की अवस्था में होने के करण इस पर पाला का प्रभाव नहीं होता है। वही नवम्बर में बोई जाने वाली फसल पर पाला का असर अवस्य रहता है इससे बचने के लिए खेत में हल्की सिचाई कर इससे बचा जा सकता है।
11- आलू की फसल की खुदाई व भंडारण:-बोवाई से 140 दिनों के बाद देखना चाहिए कि फसल बेल पीली पड़ गई है तो सिचाई 15 दिन पूर्व बन्द कर दें।इस समय खोदाई शुरू कर देनी चाहिए। आलू खोदाई के बाद कन्दों को खुले स्थान पर बिखेर । इनमें से बड़े व छोटे की छटाई कर पैकिटों में भंडारण कर लें।
अधिक गर्मी बढ़ने पर इन्हें जाली दर पैकिटों में भर शीतगृह में स्टोर करने से इन्हें सुरक्षित किया जा सकता है।
12-एक हेक्टेयर खेत में आलू की पैदावार:-वैसे तो फसल की पैदावार किस्म व समय व बोवाई तरीके पर निर्भर करती है। सामान्य किस्म व समय के अनुसार  250 से 300 कुन्तल  वही शंकर किस्मों से 300 से 400 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की पैदावार आसानी से मिल जाती है। तो दोस्तों ये था "आलू की वैज्ञानिक खेती करने का तरीका"

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