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 Tejendra kumar singh

जानिए हल्दी की खेती का तरीका।Turmeric cultivation.

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                                         Turmeric cultivation

प्रिय किसान भाइयों नमस्कार: इस लेख में आप 'को हल्दी की खेती कैसे करें','हल्दी की खेती का तरीका' के बारे में जानने वाले हैं, तो आप इस लेख को पूरा स्वस्य पढ़ें,इस लेख में आप को पूरी जानकारी दी जाएगी । यदि आप का कोई सवाल है आप हमें कमेंट्स बॉक्स में लिखें।

हल्दी की सामान्य जानकारी:- हल्दी का अंग्रेजी नाम-टर्मरिक: भारतीय वनस्पति है।दक्षिण एशिया के इस पौधे का वानस्पतिक नाम कुरकुमा लौंगा (curcuma long) है तथा यह जिंजिबरेसी कुल का सदस्य है। हल्दी के पौधे जमीन के ऊपर हरे-भरे दिखाई देते हैं। हल्दी के पौधे के पत्ते अरबी के समान चौड़े व बड़े होते हैं। इसमें काफी तेज सुगन्ध आती है। यह अदरक प्रजाति का 4 से 5 फुट तक बढ़ने वाला बारहमासी पौधा है। जिसकी जड़ में फल का उत्पादन होता है, उसी को हल्दी कहते हैं। हल्दी का गाँठ छोटी और रंग लालिमा लिए हुए पीले रंग की होती है। यह खेतो में बोई जाती है,लेकिन कई स्थानों पर यह स्वयं उत्तपन्न हो जाती है। जमीन के नीचे कन्द के रूप में इसकी जड़ें होती हैं। कच्ची हल्दी सब्जी के रूप में प्रयोग की जाती है। कच्ची हल्दी को उबालक सुखा लेते हैं, ऐसे हल्दी सूखने के बाद अपना कलर बदलकर पीले रंग में दिखती है। हल्दी स्वाद में कड़वी व तेज होती है। वही इसका सभाव रूखा व गर्म होती है। भोजन में उपयोग के लिए इसका पॉवडर बनाया जाता है।

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                                               Turmeric cultivation

2- हल्दी के प्रकार:- आकार के आधार पर हल्दी दो प्रकार की होती है, एक लंबी गाँठ वाली हल्दी, दूसरी गोल गाँठ वाली हल्दी। लेकिन सख्त और मुलायम के आधार पर भी हल्दी दो प्रकार की होती है। पहली लोहे जिस सख्त, दूसरी मुलायम व सुगन्धित। इसके अलावा एक ऐसी भी हल्दी होती है जो केवल जंगलों में मिलती है। इस हल्दी को हम आंबा नाम से जानते हैं। इसका उपयोग हम मशालों में नहीं करते। यह हल्दी रक्त की खराबी और खुजली के इलाज में प्रयुक्त की जाती है।

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3- हल्दी के पोषक तत्व:- हल्दी में एक प्रकार का सुगन्धित ऑयल 5.8% लिक्विड पदार्थ, कुर्कुमिन नामक पीले रंग का द्रव गाड़ा तेल पाये जाते हैं।

हल्दी में पाए जाने वाले तत्व निम्न प्रकार है

जल 13.1 % ग्राम, प्रोटीन 6.3 % ग्राम, वसा 5.1 ग्राम, खनिज पदार्थ 3.5 % ग्राम, रेशा 3% ग्राम कार्बोहाइड्रेट 69.4 % ग्राम, कैशियम, लोहा 18.6ग्राम % फाइवर, मैग्नीशियम,पोटेशियम, विटामिन A, 50 मिलीग्राम % ओमेगा 3, ओमेगा 6 फैटी एसिड आदि।

4- हल्दी के उपनाम:-

हिंदी में -           हल्दी

संस्कृति में -      हरिद्रा, कांचननीं

मराठी -           हलद

पंजाबी -         हरदल

बंगला -           हलुड, हरिद्रा, होल्दी

मलयालम -      मंजल

तेलेगू -            पासुपु

अरबी -           डरूफुस्सुकुर

अंग्रेजी -          टर्मरिक

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हल्दी की खेती का तरीका (Turmeric cultivation method)

5- हल्दी की अच्छी पैदावार के लिए जलवायु व मिट्टी:- हल्दी को समुद्र तल से 1500 मीटर तक विविध उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों में, 20-35 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 1500 मिमी या उससे अधिक की वार्षिक वर्षा के साथ, वर्षा आधारित या सिंचित परिस्थितियों में उगाया जा सकता है।  हालांकि इसे विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, यह अच्छी तरह से सूखा रेतीली या मिट्टी दोमट मिट्टी में अच्छी तरह से पनपता है, जिसमें अच्छी जैविक स्थिति के साथ 4.5-7.5 की पीएच रेंज होती है।

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                                       Turmeric cultivation
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6- हल्दी की उन्नत किस्में:- गांठों व रंगों के आधार पर हल्दी की कई प्रजातियां पाई जातीं हैं। मालावार की हल्दी औषधीय गुणों के लिए उपयोगी में ली जाती है। यह जुखाम व कफ के उपचार के लिए उपयोगी है।

पूना एवं बंगलौर की हल्दी रंग के लिए अच्छी मानी जाती है। जंगली हल्दी अपनी सुगन्धित गांठों के लिए पहचानी जाती है, तथा इसे कुरकुमा एरोमेटिका कहते हैं। वही हिमाचल प्रदेश में स्थानीय किस्में ही प्रचलन में हैं। हल्दी मि कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार हैं--

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A- कोयम्बटूर हल्दी:- हल्दी की यह किस्म बारानी क्षत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसके पौधे के कन्द चमकीले व बड़े, रंग में नारंगी के समान होते हैं। हल्दी की यह किस्म 280 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है।

B- बी.एस. आर.-1:- जिन क्षेत्रों में पानी की अधिकता रहती है, वहाँ के लिए अधिक उपज देने वाली अबसे अच्छी उपयुक्त किस्म है। इसके कन्द लम्बे तथा चमकीले होते हैं। हल्दी की यह किस्म भी 280 से 290 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।

C- पालम पीताम्बर:- हल्दी की यह किस्म हरे पत्तों के साथ मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त रहती है। यह किस्म किसानों को अच्छी आमदनी कराने वाली किस्म के रूप में जानी जाती है। इस किस्म की औसतन वार्षिक उपज 330 कुन्तल/हेक्टेयर प्राप्ति का अनुमानित हैं। इस किस्म में स्थानीय किस्मों से अधिक उपज देने की छमता है। और इस किस्म की गाँठिया उंगली की तरह लंबी व रंग गहरा पीला होता है।

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D- कृष्णा:- हल्दी की यह किस्म लम्बे प्रकंदों तथा अधिक उपज देने वाली किस्म है। इस किस्म के कन्द गलन के प्रति प्रतिरोधक होती है। हल्दी की यह किस्म 265 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।

E- पालम लालिमा:- इस पालम लालिमा हल्दी की किस्म की गाँठियों का रंग नारंगी होता है। यह किस्म भी स्थानीय किस्मों की अपेक्षा अधिक वार्षिक उपज प्रदान करने के लिए मशहूर है। इस किस्म की औसतन वार्षिक उपज 250 से 180 कुन्तल प्रति एकड़ को होती है। यह किस्म रंग में गहरी पीली होती है।

F- सोरमा:- हल्दी की इस किस्म का रंग सबसे अलग होता है। यह हल्के नारंगी रंग वाली हल्दी की ये फसल 210 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म का प्रति एकड़ उत्पादन 80 से 90 कुन्तल का होता है।

G- राजेन्द्र सोनिया:- हल्दी के इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 60 से 80 सेंटीमीटर तक होती  हैं। इस किस्म को तैयार होने में 195 से 200 दिन का समय लग जाता है। इस किस्म से तकरीबन 160 से 185 कुंतल प्रति एकड़ तक कि उपज प्राप्त की जा सकती है।

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H- सुदर्शन:- इस किस्म के कन्द आकार में छोटे और दिखने में सुंदर होते हैं। इस किस्म को खेत में लगाने के 190 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है।

        हल्दी की खेती का तरीका

7- हल्दी के खेत को तैयार:-

भूमि की तैयारी:-भूमि मानसून की प्रारंभिक वर्षा की प्राप्ति के साथ तैयार की जाती है।  लगभग चार गहरी जुताई करके मिट्टी को अच्छी तरह से जोता जाता है।  लेटराइट मिट्टी के लिए 500 किग्रा/हेक्टेयर की दर से हाइड्रेटेड चूना लगाना चाहिए और अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए।  प्री-मानसून वर्षा की प्राप्ति के तुरंत बाद, 1.0 मीटर चौड़ाई, 15 सेमी ऊंचाई और सुविधाजनक लंबाई के बिस्तरों के बीच 50 सेमी की दूरी के साथ बिस्तर तैयार किए जाते हैं।  मेड़ और खांचे बनाकर भी रोपण किया जाता है।

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                                 Turmeric cultivation

8- बीजाई का उचित समय व विधि:-हल्दी की फसल मि बीजाई अप्रैल से जुलाई तक कि जा सकती है। लेकिन जहां पर सिचाई के साधन हैं, वहां बीजाई अप्रैल से मई तक कि जा सकती है। हल्दी को खेत में तीन प्रकार से रोपाई की जा सकती हैं। मेंड़ों पर, समतल भूमि में व ऊँची उठी हुई क्यारियों में, इसकी खेती बलुई दोमट मिट्टी में आप समतल भूमि में भी लगा सकते हैं। परन्तु मध्यम व भारी भूमि में बीजाई सदैब मेड़ों पर एवम उठी हुई क्यारियों में ही लगाना चाहिए।

हल्दी की बिजाई हमेशा पन्तियों में ही की जानी चाहिए। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर की रखनी चाहिए। वही पंक्ति में पौधे से पौधे के बीच की दूरी 18 से 20 सेंटीमीटर के बीच होनी चाहिए।

बीजाई के लिए हमेशा स्वस्थ बीजों का ही चयन करना चाहिए, इसके लिए कन्द लगाते समय स्वस्थ बीजों को छांटकर अलग करलें। इस कार्य को करते समय ध्यान दें कि कन्द मि आंखें ऊपर की तरफ हो तथा कन्द को 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर लगाकर मिट्टी से ढक देना होता है।

9- हल्दी की फसल के लिए खाद एवं उर्बरक:- हल्दी की अच्छी पैदावार के लिए उर्बरकों को उचित मात्रा में डालना उचित रहता है। खेत तैयार करते समय 10 से 12 कुंतल प्रति बीघा सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में डालें।

ताजा गोबर की खाद खेत में कदापि ना डालें, क्योंकि इसके प्रयोग से कटवर्म व दीमक का प्रकोप होने का खतरा बढ़ जाता है, वही कन्दों पर धब्बे पड़ जाते हैं। इसके अतिरिक्त बीजाई के समय 5 किलो कैन, 15 किलो सिंगल सुपर फास्फेट 8 किलो पोटाश प्रति बीघा की दर से प्रयोग करें। कैन की शेष मात्रा को दो बार बीजाई के प्रथम 40 दिन में  2.5 किलो व 80 दिन में 2.5 किलो फसल में उपयोग करें।

या 8 किलो 12:32:16 मिक्सर व 6 किलो पोटाश प्रति बीघा बीजाई के समय खेत में डालें। इसके बाद बीजाई के 5 दिन बाद यूरिया 4 किलो प्रति बीघा के हिसाब से फसल में दें।

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                                 Turmeric cultivation

10- हल्दी के खेत मि निराई गुड़ाई करना:-हल्दी की खेती का तरीका में बात करेंज निराई व गुड़ाई की, खेत में से खरपतवारों को निकालने के लिए कम से कम 2 से 3 वार्य खेत की निराई अवस्य की जानी चाहिए। यदि बीजाई कतारों में या मेंड़ बनाकर की गई है तो एक बार गुड़ाई कुंड वाले हल से अवस्य करें।

बीजाई के तुरंत बाद  हरे पत्तों या घास की मल्चिंग करदें, ताकि मिट्टी पर पत्तियों की 4 से 5 सेंटीमीटर मोती परत बिछ जाए। इससे कन्दों का जमाव अच्छा होता है,और मिट्टी में नमी रोकने की छमता बढ़ती है। बीजाई के 50 दिन बाद पुनः 100 दिन बाद मल्चिंग करें।

11- हल्दी के खेत की सिचाई प्रबंधन:- हल्दी की खेती का तरीका के महत्वपूर्ण भाग सिचाई प्रबंधन होता हें। इस भाग में आप जानने वाले है की खेत की सिचाई कब की जाए।

वैसे हल्दी की फसल अवधि काफी लंबी रहती है यह तकरीबन 9 से 10 माह में पककर तैयार होती है। इस समय अनुसार समुचित सिचाई की आवश्यकता पड़ती है। अगेती फसल के लिए बीजाई से पहले खेत में सिचाई करना उचित रहता है,क्योंकि अप्रैल मई में इसकी बीजाई की जाती है।

फसल में वर्षा के पूर्व आवश्यकतानुसार 7 से 8 दिनों के अंतराल से सिचाई करें। शीट ऋतु में सिचाई 15 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए। वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद 15 से 20 दिन के अंतराल से सिचाई करते रहना चाहिए।

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       हल्दी की खेती का तरीका

12- फसल सुरक्षा व्यवस्था:- इस फसल में सामान्य कीड़ों का प्रकोप कम रहता है, लेकिन वर्षा ऋतु में अधिक आद्रता होने के कारण हल्दी की पत्तियों में धब्बा बीमारी जिसमें पत्तों के दोनों तरफ सफेद दाग धब्बे पड़ जाते हैं, ये धब्बे तेजी के साथ पूरे पौधे को गिरफ्त में ले लेते हैं।

ये धब्बे पत्ती की ऊपरी सतह पर अधिक दिखाई देते हैं। पौधे विकृति आकार के लाल भूरे रंग के हो जाते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए रोग रहित बीजों का ही चुनाव किया जाना चाहिए, तथा फसल की बीमार पौधों को एकत्र करके जला देना चाहिए, या जमीन में दबा दें और खड़ी फसल में इंडोफिल एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) या स्कोर 25 ई.सी. या टिल्ट 25 ई.सी. (10 ML.प्रति 10 लीटर पानी) में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर स्प्रे अवस्य करें

यदि सम्भव हो तो हल्दी की फसल लगातार एक ही खेत में करने से बचें। कन्द गलन या गठ्ठी सडन रोग जिसमें गाँठ सड़ जाती है और पत्तियां भूरी हो जातीं हैं  के रोकथाम के लिए बीजाई से पूर्व कन्दों का उपचार करलें।

हल्दी की फसल में तना छेदक या पत्ती छेदक कीटों के प्रकोप होने पर 1.5 मिली क्वीनलफॉस 36 एस.एल.प्रति लीटर में घोलकर स्प्रे करें। 

कभी-कभी हल्दी की फसल में सफेद गिडार कीट का प्रकोप भी देखा जाता है, यह कीट जमीन में रहकर गाँठियाँ को खाता रहता है। इस कीट पर नियंत्रण हेतु बीजाई के समय दो लीटर क्लोरोपाईफॉस 20 ई• सी• 25 किलो सूखी रेत में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालें।

हल्दी की खेती का तरीका

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                                Turmeric cultivation

13- हल्दी की खुदाई व उपज:- आप पड़ रहे हैं,'हल्दी की खेती का तरीका' हल्दी की फसल 8 से 9 माह में पककर तैयार हो जाती है, इस तरह हलसी को फरवरी व मार्च में खोद लिया जाता है। अब कन्दों को साफ करके उनका ढेर लगा दिया जाता है। हल्दी की अच्छी पैदावार होने लर  18 से 20 कुंतल ताजी हल्दी प्रति बीघा प्राप्त हो जाती है, जो सुखाने के बाद  5 से 6 कुन्तल प्रति बीघा रहती है।

14- प्रकंदों पर पॉलिश करना:-हल्दी को सुखाने के बाद ये दिखने में एकदम खराब व हल्के रंग के होते हैं, साथ ही साथ प्रकंदों में शल्क एवम जड़ों के टुकड़े लगे रहते हैं। प्रकंदों को पैरों के या यांत्रिक तकनीक की सहायता से पॉलिश करके साथ को चिकना बना दिया जाता है। जिससे प्रकंद दिखने में अच्छे लगते हैं।

15- बाजार में हल्दी का भाव:-भारत के मेघालय,केरल कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, व असम राज्यो में इसकी खेती मि जा रही है। हल्दी की करती का तरीका में बात कीमत की कीजाये तो 65 रुपये से लेकर 100 रुपये किलो तक कि होती है। किसान भाई इसकी खेती कर लाखों मि आमदनी कर सकते हैं।हल्दी की खेती का तरीका


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