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 Tejendra kumar singh

सतावर की खेती करने का तरीका।Method of cultivating satavar.

Method_of_cultivating_satavar
                           Method of cultivating satavar

नमस्कार दोस्तों kisan baba hindi news में आप का स्वागत है,दोस्तों इस लेख के माध्यम से आप 'सतावर की खेती का तरीका' के विषय में जानने वाले हैं,तो आप इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें और शेयर भी करदें।

1- सतावर की सामान्य जानकारी:- सतावर एक औषधीय फसल है इसे सतावरी के नाम से भी जाना जाता है। सतावर एक ऐसा पौधा है,जिससे कई प्रकार की दवाइयों का निर्माण किया जाता। सतावर एक बहुत ही महत्वपूर्ण औषधीय गुणों के कारण बाजार में इसकी मांग अधिक होने के साथ इसकी कीमत भी काफी अधिक रहती है। अतः किसान भाई परम्परागत किसानी को छोड़ कर औषधीय खेती करते हैं तो कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। सतावर को बहुसत्ता के नाम से भी जाता जाता है। विश्व में भारत के अलावा चीन, अफ्रीका, ऑस्टेलिया, नेपाल, बंग्लादेश आदि देशों की की जा रही है। सतावर का उपयोग मुख्य रूप से औषधीय निर्माण में किया जाता है।

2- सतावर के उपयोग व लाभ:- 

A- सतावर का उपयोग माताओं एवं पशुओं के स्तन में दूध बढ़ाने में उपयोग किया जाता है।

B- सतावर का उपयोग यौनशक्ति व कामवासना के उपचार में किया जाता है।

C- सतावर का उपयोग अनिद्रा की समस्या के उपचार में किया जाता है।

D- सतावर की औषधि का सेवन भूख बढ़ाने व पाचनतंत्र को ठीक करने में किया जाता है।

E- सतावर का उपयोग शहद व पीपल के साथ करने पर गर्भाशय के उपचार में किया जाता है।

F- सतावर का उपयोग शारिरिक दर्द के उवचार जैसे- पेट का दर्द, पेशाब व मूत्राशय के इलाज में, सर दर्द,गुटनों का दर्द आदि के उपचार में किया जाता है, इसके अलावा पैरों व तलवों की जलन, अर्धपक्षाघात, गर्दन मि अकड़न के इलाज में किया जाता है।

G- सतावर का उपयोग बुखारों में भी किया जाता है,जैसे - टाइफाइड, मलेरिया, पीलिया आदि।

3- सतावर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु मिट्टी और तापमान:- सतावर पौधे की जड़ें जमीन में लगभग 7 से 8 इंच की गहराई तक जातीं हैं। इस कारण इसकी खेती के लिए बलुई मिट्टी की आवश्यकता होती है, जिससे सतावर के पौधे जमीन में आसानी से फैल सकें। इसके अतिरिक्त इसकी खेती को चिकनी मिट्टी में भी की जा सकती है। सतावर की खेती के लिए जल भराव बाली भूमि उपयुक्त नहीं मानी जाती।

सतावर के पौधों के अच्छे विकास के लिए गर्म व आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है। जब बात 

4- सतावर की उन्नत किस्में:- सतावर की बाजार में कई किस्में उपलब्ध हैं। जिन्हें अन्य नामों से भी जाना जाता है। सतावर की किस्मों को स्थान व जलवायु के अनुसार उगाया जाता है।जैसे-एस्पेरेगस, गोनोक्लैडो, सारमेंटोसास, एस्पेरेगस कुरिलो, एस्पेरेगस प्लुमोसस, एस्पेरेगस स्प्रेनगस, आफिसिनेलिस, एस्पेरेगस फिलिसिनस, प्रमुख हैं।

A- नेपाली किस्म:- सतावर की इस किस्म का पौधा 3 से 4 फ़ीट तक की ऊँचाई तक जा सकता है। इस किस्म के एक पौधे से कन्दों की पैदावार 4 से 4.5 किलो तक आसानी से प्राप्त हो जाती है। सतावर की इस किस्म के पौधे 16 से 18 महीने में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति एकड़ औसतन पैदावार 200 से 250 कुन्तल तक की मिल जाती ही।

B- भारतीय किस्म:- सतावर की इस किस्म का पौधा 2 से 3 फुट तक ऊँचा हो जाता है। इस किस्म को पकने ने 18 से 20 महीने का समय लग जाता है। सतावर की इस किस्म से प्रति एकड़ पैदावार 200 से 250 कुन्तल तक कि मिल जाती है। जिसको सुखाने के बाद 30% तक शुद्ध सतावर प्राप्त हो जाती है।'सतावर की खेती का तरीका'

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                        Method of cultivating satavar

5- सतावर के बीजों की रोपाई:- सतावर के बीजों की रोपाई को खेत में बीज के रूप में की जाती है। बीजों की रोपाई कन्दों के रोकप में कई जाती है। जिससे कुछ समय बाद पौधे तैयार हो जाते हैं। इससे प्राप्त अंकुरों को पौधों से अलग कर लिया जाता है, इसके बाद अलग कल्लों को पॉलीथिन में रख दिया जाता है। तत्पश्चात 25 से 30 दिनों में पॉलीथिन से बाहर निकालकर खेत में स्थापित किया जाता है। खेत में रोपाई करने के लिए बीजों से नर्सरी तैयार की जाती है।

6- नर्सरी तैयार करने का तरीका:- सतावर की खेती को विस्तृत रूप में करने के लिए बीजों से नर्सरी तैयार की जाती है। एक एकड़ खेत में सतावर की फसल करने के लिए 120 वर्गफुट में नर्सरी तैयार करनी होती है। इसके लिए भूमि को अच्छी तरह जुताई करने के बाद खेत में खाद डालकर अच्छे से खेत की तैयारी कर लें। नर्सरी में पौधों की ऊँचाई पर्याप्त होनी चाहिए,जिससे इन्हें उकगाड कर खेत में स्थापित किया जा सकें।

एक एकड़ खेत में लगभग 2 किलो बीजों की आवश्यकता होती है। नर्सरी तैयार करने के ये खेत में बीज रोपाई के बाद गोबर मिश्रित मिट्टी को चढ़ा देना चाहिए, जिससे बीज अच्छे से ढक सकें। इसके बाद स्प्रे द्वारा खेत की सिचाई करदें। सतावर के बीजों का अंकुरण 10 से 12 दिनों के भीटी प्रारम्भ हो जाता है,तथा 30 से 35 दिन बाद पौधों को पॉलीथिन के भाव में भी तैयार किया जा सकता है।

7- सतावर की फसल मि सिचाई व्यवस्था:- वैसे सतावर की फसल को अधिक सिचाई की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन इसके पौधों को एक महीने के भीतर सिचाई अवश्य की जानी चाहिए। सिचाई के लिए स्प्रिंग्कलर विधि का भी सहारा लिया जा सकता है। सतावर की फसल को समय से सिचाई होने के कारण इसके पौधों का अच्छे से विकास हो पाता है। सिचाई के समय खेत में जल भराव कदापि नहीं होना चाहिए। जल भराव वाली भूमि में पैदावार में हानि हो सकती है।

'सतावर की खेती का तरीका'

8- सतावर के खेत की तैयारी करना:- सतावर की फसल को पककर तैयार होने में 18 से 22 महीने तक का समय लग जाता है। इस कारण फसल को उगाने से ओहले खेत को अच्छे से तैयार कर लेना चाहिए। सबसे लहले खेत को मई जून में एक गहरी जुताई कर देनी चाहिए। जुताई करने के बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दें। कुछ समय के बाद खेत में गोबर की खाद 8 से 10 ट्राली खेत में अवश्य डालें। गोबर की खाद डालने के बाद रासायनिक खाद के रूप में 100 किलो जैविक खाद की मात्रा को प्रति एकड़ खेत में डालनी चाहिए। इन खादों को खेत में डालने के बाद 55 सेंटीमीटर की दूरी मेनटेन रखते हुए 9 से 10 इंच की मेंड़ को तैयार करलें। इन मेंड़ों पर बी पौधे लगाए जाते हैं।

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                        Method of cultivating satavar

9- सतावर की फसल में रोग व उपचार:- सतावर एक औषधीय फसल है,इसमें रोगों का प्रकोप कम देखने को मिलता है, साथ ही इसकी फसल को जानवरों से भी खतरा नहीं होता क्योंकि जानवर इसकी फसल को नहीं खाते, लेकिन प्रारम्भ में इसके पौधे को अधिक देखरेख करने की आवश्यकता होती है, क्योंकि प्रारम्भ में इसके पौधों में काँटे नहीं होते। काँटे निकलने के बाद फसल की देखरेख की आवश्यकता नहीं होती।

10- सतावर की फसल में खरपतवार नियंत्रण:- सतावर एक औषधीय पौधा होने के चलते इसके खेत में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक विधि से किया जाना चाहिए। सतावर की फसल में जरूरत पड़ने पर ही खरपतवार नियंत्रण करने की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए। सतावर की फसल में खरपतवार नियंत्रण निराई-गुड़ाई विधि से की जानी चाहिए। जिससे खेत में पुलाव बना रहता है,और पौधे की जड़ों को भी पर्याप्त पोषक तत्त्व मिलते रहते हैं।

11- सतावर की खुदाई प्रक्रिया:- सतावर की फसल को तैयार होने में 18 से 24 महीने का समय लग जाता है, इस समयावधि के अंतराल में फसल की खोदाई अवश्य कर लिनी चाहिए। फसल की खोदाई के लिए अप्रैल व मई माह परफेक्ट रहता है। जब सतावर के पौधों पर लगने वाले बीज पक हुए नजर आने लगें उस समय फसल को हल्की सिचाई कर देनी चाहिए। ऐसा करने से फसल खोदने में सुविधा रहती है, पौधे की जड़ें आसानी से निकल जातीं हैं। जड़ों को भूमि से निकालने के बाद उससे चीलके को अलग कर दें।

चीलके मो ट्यूवर्स विधि का स्तेमाल किया जाता है। जड़ों से छिलका उतारने के बाद इसके कन्दों को पानी में डालकर हल्का उबाल लेना होता है।उवाल लेने के बाद इन्हें ठंडे पानी में रखकर इसकी छिलाई करदें। छिली हुई इन जड़ों को हल्की धूप   में सुखा लें। जड़ों को उबालने व सुखाने के बाद इनका रंग हल्का पीला दिखने लगता है।'सतावर की खेती का तरीका'

12- सतावर की फसल में कुल लागत प्रति एकड़:- 

1-खेती तैयारी पर खर्चा -     2000 ₹

2-बीज की लागत         -     3500 ₹

3-खाद की कुल लागत   -    8000 ₹

4-नर्सरी तैयारी पर खर्चा -    1000₹

5-मेंड़ व पौध लगाने का खर्चा - 2500 ₹

6-खरपतवार नियंत्रण पर       - 3000 ₹

7-फसल की सिचाई।            - 6000 ₹

8-दूसरे वर्ष फसल सुरक्षा       - 3000 ₹

9-कन्दों मि खुदैव धुलाई छिलाई - 40000 ₹

10- पैकिंग पर                    - 5000 ₹

कुल खर्चा   -                  74000 ₹

13- पैदावार एंव लाभ:- एक एकड़ खेत से सुखाने के बाद शुद्ध सतावर 25 कुन्तल ट्यूवर्स प्राप्त हो जाते हैं जिसे बाजार में 8000₹ प्रति किलो के भाव में बेचकर 2 से 2.2 लाख रुपये तक में बेचा जा समता है 

शुद्ध मुनाफा  = कुल फसल कीमत - कुल लागत

                 = 74000₹        -    220000 ₹

  शुद्ध लाभ                =  146000₹

प्रिय किसान भाइयों यह आंकड़े अनुमानित हैं ये दर घाट व बड़ भी हो सकते है यह बाजार पर निर्भर करता है।

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