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शकरकन्द की व्यावसायिक खेती कैसे करें।how to do commercial cultivation of sweet potato,

नमस्कार दोस्तों किसान बाबा हिंदी न्यूज़ में आप का स्वागत है, आज के इस ब्लॉग में हम बात शकरकन्द के विषय में जानकरी देने वाले हैं जैसे खेती करने का तरीका,खाद,रोग उपचार, पैदावार आदि की जानकारी दी जाएगी। दोस्तों इस ब्लॉग को पूरा अवस्य पढ़ें और इसे शेयर करें तो चलिए शुरू करते हैं।

शकरकन्द-की-व्यावसायिक-खेती-कैसे-करें
                              शकरकन्द की व्यावसायिक खेती

शकरकन्द की सामान्य जानकारी:-शकरकन्द एक खाद्य फल में रखा गया है।इसे अंग्रेजी में sweet Potato के नाम से जाना जाता है।इका वैज्ञानिक नाम  Ipomoea Batata है। जो Convovolvulaceae  कुल का एकवर्षीय पौधा है।यह एक शपुष्पक पौधा है।"शकरकन्द की व्यावसायिक खेती कैसे कसें" आगे हैं--

इसकी रूपांतरित जड़ की उत्तपत्ति तने की सर्वसन्धियों से होती है, जो जमीन के अंदर धस कर फूल जातीं हैं। शकरकन्द का रोपण जुलाई से अगस्त के।महीने में किया जाता है।

शकरकन्द के औषधीय गुण:- शकरकन्द उष्ण देशज पौधा है । यह अमेरिका से होते हुये चीन,जापान,फिलीपींस और फिर भारत पहुंचा। भारत में इसकी खेती व्यापक स्तर पर की जा रही हैं। यह एक ऊर्जा उत्पादक आहार है। इसमें अनेक विटामिन मौजूद हैं,जो स्वास्थ्य के लिहाज से फायदेमंद हैं। इसमें विटामिन ए, विटामिन सी काफी मात्रा में विद्यमान हैं। इसमें आलू के अपेक्षा कहीं ज्यादा स्टार्च मौजूद है। इनसे एल्कोहल भी तैयार किया जाता है। इसकी खेती उत्तर प्रदेश, विहार, मध्यप्रदेश राज्यों में बड़े पैमाने पर।की जाती है। इसका पौधा अधिक कहशीत ऋतु में खत्म हो जाता है।

शकरकन्द की खब्ती आलू की तरह ही की जाती है। इसकी खेती के लिए दोमट बलुई मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। हल्की अम्लीय  भूमि आच्छी रहती है। शकरकन्द की खेती किसानों के लिए मुनाफे की खेती मानी  है।"शकरकन्द की व्यावयायिक खेती कैसे करें" आगे है खेत की तैयारी--

1-शकरकन्द की अच्छी पैदावार के लिए उपयुक्त भूमि:- शकरकन्द की उम्दा पैदावार के लिए अच्छी जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता होती है। वही जल भराव वाली भूमि पथरीली भूमि शकरकन्द की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती इसे भूमि में शकरकन्द की खेती करने से बचना चाहिए,क्योंकि इसी भूमि में शकरकन्द की जडों का विकास नहों हो पाता और फसल को हानि होती है। शकरकन्द के कन्दों की मिठास और अच्छी गुणवत्ता के लिए हल्की अम्लीय भूमि में उगाना चाहिए। शकरकन्द की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिये।

2-शकरकन्द की खेती के लिए तापमान व जलवायु:-शकरकन्द की अच्छी पैदावार के लिए ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु अच्छी मानी जाती है। भारत में इसकी खेती तीनों ऋतुओं में आसानी से की जा सकती है। यदि आप इसे व्यावसायिक के लिए खेती करने वाले।हैं तो जुताई से अगस्त महीनों में की जाए तो उपयुक्त रहती है। इस मौसम में पौधे अच्छे से विकास कर पाते हैं। शकरकन्द की खेती के लिए औसत वर्षा 80 से 120 सेंटीमीटर उपयुक्त मानी जाती है।

शकरकन्द के कन्दों को शुरुआत में अंकुरण के समय 20 से 22 ℃तापमान की आवश्यकता होती है। अंकुरण निकलने के बाद विकास के उपतान्त 25 से 28 ℃ तापमान की जरूरत होती है यह तापमान शकरकन्द के खेती के लिए उपयुक्त माने जाते हैं। शकरकन्द के पौधे अधिकतम 36 ℃ तक का तापमान सहन कर सकते हैं।

"शकरकन्द की व्यावसायिक खेती कैसे करें" में उन्नत किस्में--

3-शकरकन्द की उन्नत किस्में:-फसल कोई भी हो अच्छी पैदावार के लिए अच्छे किस्म के बीजों का होना अति आवश्यक है।

शकरकन्द की कई प्रजातियां भारत में मौजूद हैं। इन्हें उनके रंग उतपादन के आधार पर तैयार किया गया है। इस आधार पर तीन प्रजातियों में विभक्त किया जाता है। इस शकरकन्द का रंग सफेद,लाल और पीला पाया जाता है।

                      शकरकन्द की खेती कैसे करें

A-एस टी-14:-शकरकन्द की यह किस्म जो ज्यादा पैदावार के लिए जाना जाता है। शकरकन्द की यह किस्म रोपाई के 110 से 120 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के कन्द बाहर से पीली दिखाई देती है। इस किस्म का प्रति एकड़ उत्पादन 8 से 9 टन के।बीच प्राप्त की जा सकती है।

B-भू-सोना किस्म :-शकरकन्द की इस किस्म के गूदा व छिलके दोनों का रंग पीला दिखाई पड़ता है। शकरकन्द की इस किस्म के पैदावार की बात की जाए तो यह किस्म प्रति एकड़ खेत में 8 से 9 तन उतपादन प्राप्त किया जा सकता है। यह किस्म भारत के दक्षिण हिस्से के बहुतायत उगाई जाती है। शकरकन्द की इस किस्म में वीटा केरोटिन की मात्रा 15 % तक पाई जाती है।

C-शकरकन्द की "गौरी" प्रजाति:- शकरकन्द की यह किस्म दिखने में लाल रंग की होती है। जबकि शकरकन्द का अंदर का भाग हल्का पीला दिखाई पड़ता है। इस किस्म की फसल रोपाई से 120 दिनों के बाद खुदाई करने के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म का प्रति एकड़ उतपादन 9 टन के आसपास प्राप्त की जा सकती है।

D-शकरकन्द की "भू कृष्णा" किस्म:-  शकरकन्द की किस्म दिखने में पीली दिखाई पड़ती है। जबकि शकरकन्द की इस किस्म का गूदा लाल दिखाई पड़ता है। इस किस्म की फसल को तिरुवनंतपुरम में तैयार किया गया है। शकरकन्द की इस किस्म का उतपादन प्रति एकड़ 8 से 9 टन प्राप्त की जा सकती है।

E-शकरकन्द की 'मीठा आलू 21' प्रजाति:-यह किस्म पंजाब में उगाई जाने वाली प्रमुख किस्मों में से एक है। इस किस्म का पकाव अवधि अन्य किस्मों की अपेक्षा अधिक है,जो रोपाई से 150 दिनों के बाद पककर तैयार होती है। इस किस्म का उत्पादन  10 टन  प्रति एकड़ रहता है। इसके फल लाल होते हैं

F-शकरकन्द की 'पूसा सफेद' किस्म:-यह शकरकन्द की किस्म दिखने में हल्के पीले रंग की होती है। लेकिन अंदर से सफेद दिखाई देती है। इस किस्म के पौधे खेत में लगाने के 110 से 115 दिनों के बाद पककर तैयार हो जाती है। शकरकन्द की इस किस्म का उत्पादन 10 से 12 टन प्रति एकड़ की रहती है।

4-शकरकन्द के खेत की तैयारी करना:-शकरकन्द को खेत में लगाने से पहले मिट्टी का भुरभुरा होना अति आवश्यक होता है। इसके लिए पिछले फसल के अवशेष की नष्ट करने के लिए पलट हल से गहरी जुताई की जानी चाहिए। कुछ दिन खुला छोड़ने के बाद पुराना सड़ा गोबर खेत में अच्छी तरह विखेर दें। खाद को अच्छी तरह मिट्टी में मिलाने के ये खेत को 2 से 3 बार कल्टीवेटर से जुताई कर देनी चाहिए।

जुताई करने के बाद खेत को पलेवा कर देना चाहिए। पलेवा करने के 8 से 10 दिन के बाद पुनः खेत को अच्छे से जुताई कर देना होता है। जुताई के बात खेत को पलटा अवस्य चलाना चाहिए ताकि खेत एक समतल हो जाये शकरकन्द की बोवाई मेंड़ बनाकर की जाती है । खेत को अच्छे से जुताई हो जाने के बाद आवस्यकता अनुसार उचित दूरी पर मेंड़ बना लेनी चाहिए। दो मेंड़ों के बीच अधिकतम 1.5 फुट की दूरी रखनी चाहिए।

5-शकरकन्द की पौध तैयार करना:-शकरकन्द की खेती करने के लिए पहले उसकी पौध तैयार करनी होती है। शकरकन्द खेत में लगाने के एक महीने पहले खेत में पौध करनी होती है। इसके बीजों को खेत में लगाकर इसकी एक बेल तैयार करनी होती है। बेल तैयार होने के बाद इसके छोटे छोटे टुकड़े कर खेत में लगाने होते हैं। यदि आप खेत में बेल तैयार करना नहीं चाहते तो आप बाजार से भी तैयार बेल को खरीद सकते हैं।

6-शकरकन्द के बीज की मात्रा:-शकरकन्द की बेल को ही खेत में रोपाई की जाती है। वही एक एकड़ खेत के लिए 200 किलो से 300 किलो तक बीज की आवश्यकता होती है। बेल का शीर्ष व मध्य भाग को ही खेत में लगाया जाता है। शकरकन्द के एक टुकड़े में 3 से 4 गाठें होनी आवश्यक हैं। वही जड़ों की लम्बाई 20 सेंटीमीटर की रखनी चाहिए। कटिंग युक्त शकरकन्द के टुकड़ों को उपचारित करने के बाद ही खेत में लगायें। उपचारित करने से पौधों (बेल) को रोग से भी छुटकारा मिल जाता है।

पौध को खेत में लगाते वक्त इसकी पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 इंच की होनी चाहिए। शकरकन्द की कटिंग को 15 सेंटीमीटर गहराई में लगानी चाहिए।

7-शकरकन्द के खेत की सिचाई:-यदि आप शकरकन्द की पौध को गर्मी के मौसम में लगा रहे हो तो इस दौरान सिचाई की अधिक आवश्यकता होती है। खेत में पौध लगाने के तुरंत बाद सिचाई कर देनी होती है। बाद में सिचाई प्रति सप्ताह सिचाई करते रहना चाहिए। शकरकन्द की अच्छी पैदावार के लिए इसके खेत में नमी का होना आवश्यक है

8-शकरकन्द के खेत में खाद उर्बरक की मात्रा:- किसी भी फसल की अच्छी पैदावार के लिए उर्बरक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शकरकन्द के पौधे व कन्द दोनों को बढ़ने के।लिए भूमि।की ऊपरी सतह से ही अपना भोजन ग्रहण करते हैं। इसके लिए शुरुआती समय में जैविक खाद की आवश्यकता होती है। इसके लिए 10 से 15 टन गोबर की सड़ी खाद खेत में मिला देनी चाहिए।

वही रासायनिक खाद के रूप में 45 किलो नाइट्रोजन,60 किलो पोटाश,60 किलो फास्फोरस की मात्रा प्रति एकड़ की दर से खेत में अंतिम जुताई के समय खेत में अवस्य डालनी चाहिए। इसके अलावा जब बेल विकास करने लगे तब दुतीय सिचाई करने के 10 दिन के बाद 40 किलो यूरिया बुर्काव करदें।

9-शकरकन्द के खेत में खरपतवारों का नियंत्रण करना:- फसल के अच्छे ग्रोथ के लिए खरपतवारों पर नियंत्रण किया जाना अति आवश्यक होता है। शकरकन्द की खेती में हाथों व रासायनिक दोनों तरीकों किया जा सकता है। रासायनिक तरीके के लिए कल्ले निकलने से पहले मेट्रीबिऊजान व पैराकुएट का छिड़काव करना चाहिए जिससे खेत में खरपतवारों पर नियंत्रण होता है।

दुतीय तरीके से खेत में घास निकालने के लिए पुराना तरीका अपमाया जा सकता है इसके लिए निराई गुड़ाई से खरपतवार को निकाला जा सकता है। इस तरीकों से खरपतवारों पर नियंत्रण कर पैदावार में इजाफा किया जा सकता है।

10-शकरकन्द की फसल में लगने वाले रोग व उपचार करना:-अन्य फसलों की भाँति शकरकन्द में भी रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है। अगर इस समय पौधों की अच्छे से देखभाल न की जाए तो ये हमारी सफल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।

A-अर्ली ब्लाइट -शकरकन्द की फसल में लगने वाला रोग:-इस रोग को अगैती झुलस रोग के नाम से भी जानते हैं। शकरकन्द में।गलने वाला यह रोग फफूदी की बजह से फैलने वाला रोग है। यह रोग अधिक नमी के कारण व उमस से फैलने वाला रोग है। इस रोग के कारण पौधों में सफेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं,अधिक प्रकोप बढ़ने से धब्बों का आकार बड़ जाता है। जिस कारण पौधों की पत्तियाँ सूख कर जमीन पर गिरने लगतीं हैं। इस रोग की रोकथाम के उपायों को करने के लिए पौधों पर मेनकोजेब या कॉप7र  की उचित मात्रा का छिड़काव कर देना चाहिए जिससे इस रोगकी रोकथाम किया जा सके।

B-शकरकन्द का घुन:-शकरकन्द की फसल में इस रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों में देखने मो मिलता है। इस रोग के कीट पौधों को बाहरी नुकसान पहुंचाते हैं,इस कारण पौधों का विकास रुक जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए रोगर दवा का उचित उपयोग किया जाना चाहिए।

C-ब्लैक स्कार्फ:-शकरकन्द की फसल में ब्लैक स्कार्फ रोग शकरकन्द के कन्दों पर देखने को मिलता है। इस रोग के लगने पर इसके कन्दों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं। पौधों का विकास रुक जाता है,और यदि रोकथाम ना की जाए तो पौधे सूख कर नष्ट हो जाते हैं। इस रोग से छुटकारा पाने के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए। बीज को मरकरसे उपचारित किया जाना चाहिए। यदि फसल में रोग लग गया है तो आगे इस भूमि में शकरकन्द की फसल को करने से बचना चाहिए।

11-शकरकन्द की खोदाई करना:-खेत में रोपाई के लगभग 110 से 115 दिनों के बाद फसल खोदाई के लिए तैयार हो जाती है। इस दौरान पौधों की पत्तियां नीचे गिरने लगतीं हैं।इस समय फसल की खोदाई आरम्भ कर देनी चाहिए। इस समय खोदाई के लिए मशीनों का उपयोग किया जा रहा है जिससे लागत भी काफी कम हो जाती है। खोदाई से पहले खेत को हल्की सिचाई करदेनी चाहिए इससे खेत की मिट्टी मुलायम हो सके।

                      शकरकन्द की खेती कैसे करें

12-शकरकन्द की सफाई करना:-कन्दों की खुदाई के बाद इनकी सफाई करना आवश्यक होता है। कन्दों को पानी से सफाई करने के बाद कुछ घण्टों के लिए इन्हें छाया में सुखाना चाहिए जिससे नमी ना रहे। अब उन्हें बोरों में पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज सकते हैं।

13-शकरकन्द की पैदावार और लाभ:-शकरकन्द की विभिन्न किस्मों की पैदावार प्रति एकड़ औसतन 12 से 13 टन के आसपास रहने का अनुमान होता है। जबकि की इसका थोक बाजार भाव 15 से 18 रु प्रति किलो का मिल जाता है। 15 का लगाया जाए तो किसान भाई इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते है ।


प्रिय किसान भाइयों यह जानकारी केवल सूचनार्थ है,इसके लाभ-हानि का उत्तरदायित्व स्वयं आप का होगा।

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